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मासूम नौनीहालों का क्या है कसूर ? झोपड़ी में पढ़ने मासूम बच्चे है मजबूर

झोपड़ी नुमा झाला में लगती है सरकारी पाठशाला

 

 

रिपोर्ट – मुकेश मंडावी

राजनांदगांव छुरिया :- जहां एक तरफ शासन- प्रशासन आदिवासियों एवं आदिवासी अंचल के सर्वांगीण विकास की ढिंढोरा पीटती है वहीं दूसरी तरफ आदिवासी बाहुल्य गांवों के शिक्षा एवं सड़क जैसे मूलभूत सुविधाओं का हाल बेहाल है। जहां एक तरफ शहरी एवं मैदानी अंचल के बच्चे टाईल्स एवं मार्बल लगे सर्वसुविधा युक्त ऑलीशान शाला भवनों में पढ़ाई कर अपने सपनों को साकार करने लगे रहते हैं वहीं दूसरी तरफ आदिवासी, ग्रामीण एवं वनांचल के मासूम बच्चों को ठीक से पाठशाला भी नसीब नहीं होता।यह उदाहरण किसी बस्तर या सरगुजा जैसे दुरस्थ एवं बीहड़ वनांचल की नहीं है बल्कि संस्कारधानी के नाम से सुप्रसिद्ध राजनांदगाँव जिला मुख्यालय से महज 62 किलोमीटर एवं ब्लाक मुख्यालय छुरिया से मात्र 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्रामपंचायत गेरूघाट के टोला मंगियाटोला में बूचाटोला संकुल आश्रित शासकीय प्राथमिक शाला मंगियाटोला की हाल है। यहां के मासूम नौनीहाल आदिवासी ग्रामीणों द्वारा बनाए झोपड़ी नुमा झाला में पढ़ाई करने मजबूर हैं।
गेरूघाट के ग्राम पटेल एवं मंगियाटोला निवासी चेतनराम कुंजाम,शाला प्रबंधन एवं विकास समिति के अध्यक्ष धर्मेन्द्र पडोटी, उपाध्यक्ष उमेश कंवर, उमेन्द सिंह खुरश्याम, बीरसिंग मंडावी,रामलाल नेताम एवं पूनत राम कुमरे आदि आदिवासियों ने बताया कि शासन-प्रशासन आदिवासी महानायक भगवान बिरसा मुंडा के जयंती को जनजाति गौरव दिवस के रूप में भव्य आयोजन कर अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों का सर्वांगीण विकास करने का खूब ढिंढोरा पीट रही है। अनुसूचित जनजाति वर्ग के हित में किये जा रहे विभिन्न योजनाओं के प्रसार प्रचार हेतु करोड़ों रूपये पानी की तरह बहायी जा रही है। विभिन्न आयोजन के माध्यम से अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को लुभाने का प्रयास कर रही है। लेकिन जमीनी स्तर पर देखा जाय तो आदिवासी वर्ग को उनका लाभ नहीं मिल पा रहा है।शासन- प्रशासन को सच्चाई को स्वीकार कर जनजाति गौरव दिवस मनाने के पूर्व आदिवासी अंचल के आदिवासियों को मूलभूत सुविधाओं का लाभ दिलाना चाहिए।

मंगियाटोला के ग्रामीणों ने आगे बताया कि शासकीय प्राथमिक शाला मंगियाटोला में वर्तमान में 30 छात्र-छात्राएं अध्ययनरत है।जिन्हें पढ़ाने के लिए 2 शिक्षक अपनी सेवा दे रहे हैं। शिक्षकों के अध्यापन कार्य में कोई कमी नहीं है। बच्चों की पढ़ाई एवं खेलकूद का स्तर भी उत्कृष्ट है।लेकिन सबसे बड़ी समस्या सर्व सुविधायुक्त शाला भवन की है। मंगियाटोला में कनिष्ठ शाला के नाम से 1992-93 संचालन का शुभारंभ हुआ पांच साल के बाद में प्राथमिक शाला का दर्जा मिला। प्राथमिक शाला के नाम पर शासकीय शाला भवन का निर्माण हुआ जो अत्यंत ही जर्जर अवस्था में है। सन 2008 में शाला भवन का मरम्मत भी किया गया गया लेकिन वर्तमान में शाला भवन अति जर्जर अवस्था में है। छत की मलमा टूट कर गिरने,सज्जा का छड़- सीमेंट निकलने से डरावना स्थिति में है। मुख्य दरवाजा के चैनल गेट टूटकर अस्त-व्यस्त हो चुका है।चैनल गेट के टुटने से चोरी होने की आशंका बनी रहती है। शाला भवन के अति जर्जर स्थिति को देखकर शाला के समीप एक आदिवासी किसान लखन लाल मंडावी के खलिहान (कोठार) में बने निजी भवन मे शाला संचालित हो रही थी ।लेकिन धान कटाई एवं मिंजाई का समय आने के कारण वहां शाला संचालन करना संभव नहीं हो पाया। बच्चे पढ़ाई करें तो कहां करें क्योंकि गांव में कोई शासकीय भवन भी नहीं है ? एक महिला मंडल भवन है उसे भी खाद्यान्न गोदाम एवं वितरण केन्द्र के रूप में उपयोग कर उसमें खाद्यान्न का वितरण किया जाता है। अति जर्जर शाला भवन में खतरनाक स्थिति को देखकर बच्चों को शाला भवन में बैठाकर पढ़ाई करवाना बिल्कुल भी संभव नहीं है। अब ग्रामीण,बच्चे एवं शिक्षक करें तो क्या करें? बहुत ही गंभीर स्थिति निर्मित हो चुकी है।

शौच करने झाड़ी में जाने को बच्चे हैं मजबूर

मंगियाटोला के ग्रामीणों ने आगे बताया कि शाला भवन के साथ-साथ रसोई कक्ष एवं बालक-बालिका शौचालय भी अत्यंत ही जर्जर अवस्था में है।रसोई कक्ष अति जर्जर स्थिति में होने के कारण बरसात के मौसम में पानी टपकने से मध्यान्ह भोजन पकाने में रसोईयों को अत्यंत ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बालक-बालिका शौचालय भी अत्यंत ही जर्जर अवस्था में है जिससे शिक्षकों एवं बालक-बालिकाओं को परेशानियों से दो चार होना पड़ता है।एक तरफ स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत मिशन चलायी जा रही है वहीं दूसरी तरफ बच्चों को शौच के लिए पास के झाड़ी में जाना पड़ता है जो कि अत्यंत ही शर्मनाक, खतरनाक एवं खौफनाक है क्योंकि वहां किसी प्रकार की अनहोनी की आशंका बनी रहती है।

अहाता भी है आधा- अधुरा
शाला भवन एवं शाला परिसर की सुरक्षा की दृष्टि से अहाता का निर्माण किया गया है वह भी झाड़ी तरफ अपूर्ण है जिससे जंगली जानवरों की आने का भय बना रहता है।
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पक्की सड़क एवं आंगनबाड़ी केन्द्र भवन की भी है आवश्यकता

ग्रामपटेल चेतन कुंजाम ने बताया कि लगभग अस्सी परिवार के निवास वाले ग्राम मंगियाटोला में पहुंचने के लिए मुख्यग्राम एवं पंचायत मुख्यालय गेरूघाट, आमगांव एवं बूचाटोला तीन ओर से रास्ता है लेकिन तीनों रास्ता कच्ची है जिससे ग्रामीणों को बरसात में कीचड़ एवं गर्मी में धूल से आवागमन में अत्यंत ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों के लगातार प्रयास एवं मांग करने पर आजादी के 77 वर्षों के बाद बड़ी मुश्किल से आँगनबाड़ी केन्द्र खुल पाया है जिसके लिए भी नया आंगनबाड़ी केन्द्र भवन निर्माण की आवश्यकता है।

अब सड़क पर उतरेंगे ग्रामीण
ग्रामीणों ने सैकड़ों हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन के माध्यम से बताया कि अत्यंत जर्जर शाला भवन संबंधी समस्याओं से क्षेत्रीय सांसद संतोष पाण्डेय, कलेक्टर साहब, जिला शिक्षा अधिकारी एवं विकास खंड शिक्षा अधिकारी को भी लिखित रूप में अवगत कराया जा चुका है लेकिन सिवाय आश्वासन के कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है।
समस्याओं के समाधान की गुहार लगाते हुए मंगियाटोला के आदिवासी ग्रामीण अब थक चुके है। अब अंतिम एक बार फिर से उच्च अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों को अवगत कराकर छुरिया-बंजारी मुख्य सड़क मार्ग पर चक्काजाम करने पर मजबूर होंगे यही एक मात्र रास्ता बचा है।

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