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पखांजुर/ खैरकट्टा जलाशय का नहर निर्माण की गुणवत्ता गई पानी में, 33 करोड़ की नहर बह गई बारिश में।

ग्रामीण चेताते रहे, अफसर सोते रहे, नतीजा, नहर बह गई

खैरकट्टा जलाशय का नहर निर्माण की गुणवत्ता गई पानी में, 33 करोड़ की नहर बह गई बारिश में।

पखांजुर, 3 जुलाई/ करीब 33 करोड़ रुपए की लागत से बन रही खैरकट्टा जलाशय की नहर पहली ही बारिश में बह गई, जिससे निर्माण कार्य की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। पहली ही मानसून की दस्तक ने करोड़ों की इस परियोजना की पोल खोल दी है। नहर के कई हिस्सों में दरारें आ गई हैं और कई स्थानों पर नहर की दीवारें पूरी तरह से ढह गई हैं। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि निर्माण कार्य में भारी लापरवाही और घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया है।

ज्ञात हो कि यह नहर खैरकट्टा जलाशय से करीब 14 किलोमीटर लंबाई में किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने के उद्देश्य से बनाई जा रही है, जिससे क्षेत्र के सैकड़ों किसानों को सिंचाई सुविधा मिल सके। लेकिन अब तक मात्र 5-6 किलोमीटर ही नहर का निर्माण हुआ है और वह भी पहली बरसात की मार नहीं झेल सका। इस नहर का निर्माण कार्य शुरू से ही संदेह के घेरे में था, स्थानीय ग्रामीण लगातार घटिया निर्माण की शिकायत करते आ रहे थे, लेकिन संबंधित विभाग और अधिकारियों ने आंखें मूंदे रखीं।

ग्रामीणों की चेतावनियों को किया नजर अंदाज

स्थानीय ग्रामीणों ने निर्माण की शुरुआत से ही नहर में घटिया सीमेंट, रेत के उपयोग की ओर ध्यान आकर्षित कराया था। उन्होंने कई बार विभागीय अधिकारियों को इसकी जानकारी दी और निर्माण स्थल का निरीक्षण करने की मांग की, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की। ग्रामीणों का कहना है कि निर्माण स्थल से महज 4-5 किलोमीटर की दूरी पर SDO कार्यालय मौजूद है, बावजूद इसके कार्य की नियमित निगरानी नहीं की गई।

जनप्रतिनिधियों की भी चुप्पी

इतनी बड़ी परियोजना में अनियमितता के बावजूद अभी तक किसी जनप्रतिनिधि ने भी इस विषय को गंभीरता से नहीं उठाया है। न तो हस्तक्षेप किया, न ही उच्च अधिकारियों ने संज्ञान लिया। इस चुप्पी ने संदेह को और भी गहरा कर दिया है।

भ्रष्टाचार की बू, जांच की मांग

परियोजना में भारी भ्रष्टाचार की आशंका जताई जा रही है। ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उनका कहना है कि अगर शुरुआत में ही जांच कर कार्रवाई नहीं की गई, तो आने वाले समय में सरकारी राशि का ऐसा दुरुपयोग बार-बार होता रहेगा।

करीब 33 करोड़ की लागत से बन रही खैरकट्टा नहर का पहली बारिश में बह जाना न केवल सरकारी धन की बर्बादी है, बल्कि यह विभागीय लापरवाही और भ्रष्टाचार की एक गंभीर मिसाल है। अब देखना होगा कि प्रशासन इस मामले में क्या कुछ कार्रवाई करता है?

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